सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, July 6, 2008

उम्मीद

कभी दिल के गीत तन्हाइयों में गुनगुना के देख
ज़िंदगी है एक कोरा केनवस सब रंग सज़ा के देख

रोशन तमाम हो जाएँगी तेरी सब मंज़िल की राहें
प्रेम का हर रंग इन में मिला के ज़रा तू देख

कांपेगी टूटेगी हर उदासी की ज़ंजीरे तेरी
ख़ुद को किसी की राहा का दीप बना के तू देख

मिलती है यह ज़िंदगी सुख दुःख से सज़ा के
हर रंग में तू इसे बस मुस्करा के देख

कभी कभी वक़्त लेता है यूँ ही इम्तिहान
कभी ख़ुद की नज़रो को आईना बना के देख

ना घबरा तू यूँ ही इन दुख के काले सायो से
दिल की ज़मीन पर उम्मीद के फूल खिला के देख

यह तन जो मिला है एक माटी का खिलोना है
इस माटी को अपने कर्मो से सोना बना के देख !!


रंजू

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

6 comments:

Manvinder said...

bahut khoobsurat hai andaaj. badhee
Manvinder

Anonymous said...

कभी कभी वक़्त लेता है यूँ ही इम्तिहान
कभी ख़ुद की नज़रो को आईना बना के देख
bahut sunder kaash !!!

शोभा said...

रंजना जी
बहुत सुन्दर गज़ल है-
कभी दिल के गीत तन्हाइयों में गुनगुना के देख
ज़िंदगी है एक कोरा केनवस सब रंग सज़ा के देख

रोशन तमाम हो जाएँगी तेरी सब मंज़िल की राहें
प्रेम का हर रंग इन में मिला के ज़रा तू देख
भाव और भाषा दोनो सुन्दर। बधाई

मीनाक्षी said...

ना घबरा तू यूँ ही इन दुख के काले सायो से
दिल की ज़मीन पर उम्मीद के फूल खिला के देख ---
कभी कभी ऐसे भाव डूबते के लिए तिनके जैस सहारा बन जाते हैं..

neelima garg said...

beautiful lines...

neelima garg said...

beautiful lines...