सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, May 1, 2010

नारी जीवन - तेरी यही कहानी!

जीवन जिया,
मंजिलें भी मिली,
एक के बाद एक
बस नहीं मिला तो
समय नहीं मिला।
कुछ ऐसे क्षण खोजती ही रही ,
जो अपने और सिर्फ अपने लिए
जिए होते तो अच्छा होता।
जब समझा अपने को
कुछ बड़े मिले कुछ छोटे मिले
कुछ आदेश और कुछ मनुहार
करती रही सबको खुश ।
दूसरा चरण जिया,
बेटी से बन बहू आई,
झूलती रही, अपना कुछ भी नहीं,
चंद लम्हे भी नहीं जिए
जो अपने सिर्फ अपने होते।
पत्नी, बहू और माँ के विशेषण ने
छीन लिया अपना अस्तित्व, अपने अधिकार
चाहकर न चाहकर जीती रही ,
उन सबके लिए ,
जिनमें मेरा जीवन बसा था।
अपना सुख, खुशी निहित उन्हीं में देखी
थक-हार कर सोचा
कुछ पल अपने लिए
मिले होते
ख़ुद को पहचान तो लेती
कुछ अफसोस से
मुक्त तो होती
जी तो लेती कुछ पल
कहीं दूर प्रकृति के बीच  या एकांत में
जहाँ मैं और सिर्फ मैं होती.

8 comments:

SANJEEV RANA said...

jeevan ytharth darshan
bilkul thik kaha aapne

vandana gupta said...

नारी जीवन का समस्त चित्रण …………………बहुत बढिया।

neelima garg said...
This comment has been removed by the author.
neelima garg said...

जी तो लेती कुछ पल
samay to nikalna hi hoga......

Anonymous said...

"चाहकर न चाहकर जीती रही ,
उन सबके लिए ,
जिनमें मेरा जीवन बसा था।
अपना सुख, खुशी निहित उन्हीं में देखी"
आजीवन दूसरों के ले समर्पित तभी तो "महान" है

ZEAL said...

nice !

वाणी गीत said...

जी तो लेती कुछ पल कहीं दूर प्रकृति के बीच या एकांत मेंजहाँ मैं और सिर्फ मैं होती...
हर नारीमन के अंतर्मन की व्यथा ...

मगर कुछ पल सिर्फ अपने लिए निकालना इतना मुश्किल भी नहीं ...!!

Sadhana Vaid said...

बहुत दर्दभरी सच्चाई है इस रचना में ! नारी का समस्त जीवन ऐसे ही ऊहापोह और असमंजस में बीत जाता है और जब वह सारे दायित्वों से मुक्त होकर अपने जीने के लिए कुछ पल ढूँढती है तो बहुत देर हो चुकी होती है ! सुन्दर रचना के लिए बधाई एवं आभार !