सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, November 9, 2009

वन्दे मातरम -- मातृ भूमि कुमाता कैसे हो जाये ??

ना जाने क्यूँ लोग बार बार

उनसे कहते हैं वन्दे मातरम गाओ

वन्दे मातरम

और

जन गण मन

तो वही गाते हैं

जिनके मन मे देश प्रेम होता हैं

मातृ भूमि को जो चाहेगे

वो ईश्वर से भी मातृ भूमि के लिये लड़ जायेगे

दो बीघा जमीन बस दो बीघा जमीन नहीं होती हैं

अन्न देती हैं , जीवन देती हैं

उस माँ कि तरह होती हैं

जो नौ महीने कोख मे रखती हैं

खून और दूध से सीचती हैं

पर माँ को माँ कब ये मानते हैं

कोख का मतलब ही कहां जानते हैं

मातृ भूमि भी माँ ही होती हैं

कुमाता नहीं हो सकती हैं

इसीलिये तो कर रही हैं इनको

अपनी छाती पर बर्दाश्त

ये जमीन हिन्दुस्तान कि

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