सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, January 4, 2009

करुण पुकार

डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी की ये कविता अतिथि कवि की पोस्ट के तहत पोस्ट की जा रही हैं । आप भी पढ़े और अपने कमेन्ट दे ।

करुण पुकार

(माँ के नाम अजन्मी बिटिया की)

माँ,
मुझे एक बार तो जन्मने दो,
मैं खेलना चाहती हूँ
तुम्हारी गोद मैं,
लगना चाहती हूँ
तुम्हारे सीने से,
सुनना चाहती हूँ
मैं भी लोरी प्यार भरी,
मुझे एक बार जन्मने तो दो;
माँ,
क्या तुम नारी होकर भी
ऐसा कर सकती हो,
एक माँ होकर भी
अपनी कोख उजाड़ सकती हो?
क्या मैं तुम्हारी चाह नहीं?
क्या मैं तुम्हारा प्यार नहीं?
मैं भी जीना चाहती हूँ,
मुझे एक बार जन्मने तो दो;
माँ,
मैं तो बस तुम्हे ही जानती हूँ,
तुम्हारी धड़कन ही पहचानती हूँ,
मेरी हर हलचल का एहसास है तुम्हे,
मेरे आंसुओं को भी
तुम जरूर पहचानती होगी,
मेरे आंसुओं से
तुम्हारी भी आँखें भीगती होगी,
मेरे आंसुओं की पहचान
मेरे पिता को कराओ,
मैं उनका भी अंश हूँ
यह एहसास तो कराओ,
मैं बन के दिखाऊंगी
उन्हें उनका बेटा,
मुझे एक बार जन्मने तो दो;
माँ,
तुम खामोश क्यों हो?
तुम इतनी उदास क्यों हो?
क्या तुम नहीं रोक सकती हो
मेरा जाना ?
क्या तुम्हे भी प्रिय नहीं
मेरा आना?
तुम्हारी क्या मजबूरी है?
ऐसी कौन सी लाचारी है?
मजबूरी..??? लाचारी...???
मैं अभी यही नहीं जानती,
क्योंकि
मैं कभी जन्मी ही नहीं,
कभी माँ बनी ही नहीं,
माँ,
मैं मिटाउंगी तुम्हारी लाचारी,
दूर कर दूंगी मजबूरी,
बस,
मुझे एक बार जन्मने तो दो.


© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

2 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

क्‍या बात है दिल को छू गई आपकी ये कविता
वैसे आज के समय में ज्‍यादातर बेटियां ही मां बाप के बारे में सोचती हैं
बेटे भी सोचते हैं लेकिन बेटियां ज्‍यादा
फिर भी उन्‍हें ना जाने क्‍यूं ये सजा मिलती है वो भी जन्‍म लेने से पहले
डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी को बारम्‍बार नमन इस कविता को लिखने के लिए शायद इसे पढकर कुछ हद तक कमी आ ही जाए

रेखा श्रीवास्तव said...

कविता बहुत सुन्दर लिखी है, शायद उन हत्यारों को कुछ समझ आ जाये जो कि अजन्मी आत्मा की पहले ही हत्या कर देते हैं, इनमें माँएं कम ही होती हैं, बाकी तो वह हैं जिन्हें घर के चिराग की चिन्ता होती है, भले ही वे चिराग घर रोशन न करें.