सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, November 9, 2008

विश्वास

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विश्वास
तुम किसी को कुछ भी कहो
किसी को डाँटो, प्यार करो
पर मैं कुछ न बोलूँ
मुँह न खोलूँ
और बोलने से पहले
स्वयं को तोलूँ
फिर कैसे जीऊँ !
समाज की
असंगतियाँ और विसंगतियाँ
कब होंगी समाप्त
कब मिलेगा समान रूप से
जीने का अधिकार
रेत होता अस्तित्व
कब लेगा सुंदर आकार
किसी साकार कलाकृति का !
इसी आशा में इसी प्रत्याशा में
जी रही है आज की नारी
कि कोई तो कल आएगा
जो देगा ठंडक मन को
काँटों में फूल खिलाएगा
देगा हिम्मत तन-मन को
जीवन को
खुशियों से महकाएगा
तन में आस
जीने की प्यास और
मन में विश्वास जगाएगा
पूरा है भरोसा
और पूरी है आस्था
कि वह अनोखा
एक दिन अवश्य आएगा !

9 comments:

Unknown said...

आपकी आस्था और विश्वास पर विश्वास करने को मन करता है, पर कोई अधिकार ऐसे ही नहीं दे देता. उस के लिए संघर्ष करना होता है. यह संघर्ष अगर कर्तव्य निर्वाहन के साथ किया जाय तो अधिक सक्तिशाली और प्रभावशाली हो जाता है.

Alpana Verma said...

रेत होता अस्तित्व
कब लेगा सुंदर आकार
किसी साकार कलाकृति का !
-----------------और पूरी है आस्था
कि वह अनोखा
एक दिन अवश्य आएगा !

bahut hi achchee kavita hai..sakaratmak soch batati hui...

mehek said...

positive thinking se bharisundar kavita ke liye badhai

Smart Indian said...

तथास्तु!

Vivek Gupta said...

सुंदर पंक्तियाँ और अच्छी कविता।

Vivek Gupta said...

सुंदर पंक्तियाँ और अच्छी कविता।

पुनीत ओमर said...

मन में विशवास कायम रहे और आगे बढ़ने की दिशा पता हो तो वोह दिन अवश्य ही आएगा.

RADHIKA said...

बहुत ही सुंदर भावपूर्ण कविता .आपको इस सच्ची कविता के लिए badahi

makrand said...

bahut sunder kavita