सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, August 29, 2008

क्योंकि मैं लड़की हूं

सचिन मिश्रा जी की ये कविता हम अतिथि कवि की कलम से के तहत पोस्ट कर रहे हैं ।
हिन्दी ब्लॉगर सचिन मिश्रा जी नारी आधरित विषयों पर अपनी राय कमेन्ट के माध्यम से हम तक पहुचाते रहे हैं ।
इस कविता को यहाँ पोस्ट करके हम शायद बस इतना कर रहे के की उनके कलम से निकली "अपनी बात को " एक बार फिर दोहरा रहे हैं ।
क्योंकि मैं लड़की हूं
किसी ने कोख में खत्म कर दिया
किसी ने पंगूड़ा में छोड़ दिया
किसी ने मेरे जन्म पर खाना ही छोड़ दिया
सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं लड़की हूं
इसमें उनका कोई कसूर नहीं
कसूरवार तो मैं हूं
क्योंकि मैं लड़की हूं
भाई शहर में पढ़ेगा, मैं घर से निकलूंगी तो कोई देख लेगा
मैं उनका नाम थोड़े ही रोशन करूंगी
रूखा-सूखा खाकर भी भाई से मोटी हूं
दिन-दूने, रात चौगुने बढ़ती हूं
क्योंकि मैं लड़की हूं.
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

5 comments:

सचिन मिश्रा said...

नारी ब्लाग पर क्योंकि मैं लड़की हूं को जगह देने के लिए आपका धन्यवाद.

L.Goswami said...

shabd kaam hai tarif ke liye..

Asha Joglekar said...

yatharth warnana.

* મારી રચના * said...

ek khamosh cheekh sirf mai sunti hu
kyu ki mai ladki hu....

Unknown said...

दुर्भाग्य है कि यही यथार्थ है.
आइये इसे बदलें.